प्रेम और वैराग्य
संस्कृत के कई महान कवि हुए हैं जिनके शब्द हर पीढी के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हुए हैं। ' भर्तहरि ' भी इसी
प्रकार के कवि थे।
एक बार महाराज भर्तहरि के महल में एक विद्वान आये और उन्हें एक अनोखा फल दे गए। इस फल को खा
लेने से मनुष्य सदा के लिए जवान बना रहता था। राजा जो अपनी पत्नी अर्थात रानी से अपार प्रेम करता था,
उसने सोंचा कि उसकी रानी ' पिंगला ' के लिए यह सर्वोत्तम उपहार होगा। अतः वह फल रानी को दे दिया।
किन्तु उसकी रानी घुड़साल में काम करने वाले एक युवक से प्रेम करती थी, राजा से नहीं।
अतः उसने वह फल उसे दे दिया।
किन्तु उस युवक ने फल अपनी नयी दुल्हन को दे दिया। किन्तु वह दुल्हन भर्तहरि को प्रेम करती थी, अतः
उसने वह फल भर्तहरि को दे दिया।
जब वह फल लौट कर भर्तहरि के पास वापस आ गया तो राजा को सांसारिक प्रेम के खोखलेपन का एहसास
हुआ। और उसने अपना साम्राज्य त्याग दिया।
इस प्रकार उसकी महान कविता ' वैराग्य शतक ' की रचना हुयी।
एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है।
संस्कृत के कई महान कवि हुए हैं जिनके शब्द हर पीढी के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हुए हैं। ' भर्तहरि ' भी इसी
प्रकार के कवि थे।
एक बार महाराज भर्तहरि के महल में एक विद्वान आये और उन्हें एक अनोखा फल दे गए। इस फल को खा
लेने से मनुष्य सदा के लिए जवान बना रहता था। राजा जो अपनी पत्नी अर्थात रानी से अपार प्रेम करता था,
उसने सोंचा कि उसकी रानी ' पिंगला ' के लिए यह सर्वोत्तम उपहार होगा। अतः वह फल रानी को दे दिया।
किन्तु उसकी रानी घुड़साल में काम करने वाले एक युवक से प्रेम करती थी, राजा से नहीं।
अतः उसने वह फल उसे दे दिया।
किन्तु उस युवक ने फल अपनी नयी दुल्हन को दे दिया। किन्तु वह दुल्हन भर्तहरि को प्रेम करती थी, अतः
उसने वह फल भर्तहरि को दे दिया।
जब वह फल लौट कर भर्तहरि के पास वापस आ गया तो राजा को सांसारिक प्रेम के खोखलेपन का एहसास
हुआ। और उसने अपना साम्राज्य त्याग दिया।
इस प्रकार उसकी महान कविता ' वैराग्य शतक ' की रचना हुयी।
एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है।
टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। उस पहलवान आदमी नेँ बुद्दिमानी दिखाते हुए कहा- इतने पास के दो सौ रुपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो। मैँ अपना सामान खुद ही उठा कर चला जाऊँगा।
वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दुरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे?
टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये।
उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ।
टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप साईँ मंदिर की विपरीत दिशा मेँ दौड़ लगा रहे हैँ जबकि साईँ मँदिर तो दुसरी तरफ है।
उस पहलवान व्यक्ति नेँ कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया।
इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ, और फिर अपनी मेहनत और समय को बर्बाद कर उस काम को आधा ही करके छोड़ देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से
पहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ।
पहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ।
हमेशा एक बात याद रखेँ कि दिशा सही होनेँ पर ही मेहनत पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।